
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में मोटर वाहन अधिनियम (Motor Vehicle Act) के तहत एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है जिसमें कहा गया है कि अगर किसी पति की खुद की कमाई का सबूत मौजूद नहीं है, तो उसे पत्नी की आय पर आश्रित माना जा सकता है और उसे मुआवजे (Compensation) का अधिकार प्राप्त होगा। इस निर्णय में कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि किसी व्यक्ति को सिर्फ इस आधार पर मुआवजे से वंचित नहीं किया जा सकता कि वह एक सक्षम पुरुष है।
2015 की सड़क दुर्घटना से जुड़ा है मामला
यह मामला 22 फरवरी 2015 को हुए एक सड़क हादसे से संबंधित है। एक महिला अपनी मोटरसाइकिल पर पीछे बैठी थी, जब हादसा हुआ और वह सड़क पर गिरकर गंभीर रूप से घायल हो गई। उपचार के दौरान दो दिन बाद उसकी मृत्यु हो गई। महिला के पति और दो बच्चों ने मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT) में मुआवजा (Compensation Claim) की मांग की थी। अधिकरण ने फैसला दिया कि केवल बच्चे ही मृतका पर आश्रित थे, पति नहीं, क्योंकि वह 40 वर्ष का सक्षम व्यक्ति था।
हाई कोर्ट से होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा मामला
बीमा कंपनी द्वारा इस निर्णय को चुनौती दी गई और मामला उच्च न्यायालय (High Court) से होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट की बेंच जिसमें जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस के. विनोद चंद्रन शामिल थे, ने 29 अप्रैल 2025 को इस मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि यह केवल यह कहना पर्याप्त नहीं है कि पति सक्षम है, जब तक उसकी खुद की कमाई का सबूत नहीं प्रस्तुत किया जाता।
पति को भी आश्रित मानकर मिला मुआवजा
कोर्ट ने यह मानते हुए कि पति मृतका की आमदनी पर निर्भर था, उसे और दोनों बच्चों को आश्रित घोषित किया। इसके बाद कुल 17 लाख 84 हजार रुपये का मुआवजा तय किया गया। यह निर्णय मोटर वाहन अधिनियम के तहत उन सभी मामलों पर लागू होगा जहां यह साबित किया जा सके कि आश्रित ने मृतक की आमदनी पर निर्भरता रखी थी, चाहे वह आश्रित पति ही क्यों न हो।
कानूनी प्रतिनिधियों की परिभाषा को सुप्रीम कोर्ट ने दिया व्यापक स्वरूप
सुप्रीम कोर्ट पहले ही इस बात को स्पष्ट कर चुका है कि सड़क दुर्घटनाओं में मुआवजा मृतक पर आर्थिक रूप से निर्भर सभी सदस्यों को दिया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि ‘कानूनी प्रतिनिधि‘ (Legal Representative) शब्द की व्याख्या सीमित नहीं की जानी चाहिए। अगर मुआवजा मांगने वाला व्यक्ति मृतक की आय पर निर्भर था, तो उसे मुआवजा पाने का अधिकार है। इस फैसले ने यह सिद्ध कर दिया कि मृतक की कमाई पर निर्भर पति को भी अब आश्रित मानकर मुआवजा मिल सकता है।
सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है फैसला
यह फैसला न सिर्फ कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी एक बड़ी पहल मानी जा रही है। आमतौर पर यह मान लिया जाता है कि पुरुष ही परिवार का कमाऊ सदस्य होता है, लेकिन वर्तमान समय में यह धारणा तेजी से बदल रही है। महिलाएं आज विभिन्न क्षेत्रों में कमाई कर रही हैं और कई बार उनके पति गृहस्थी की जिम्मेदारी निभा रहे होते हैं। ऐसे में अगर कोई महिला सड़क हादसे में जान गंवाती है और उसका पति उसकी आमदनी पर निर्भर था, तो उसे मुआवजे से वंचित नहीं किया जा सकता।
भविष्य के मामलों में बनेगा मिसाल
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय आने वाले समय में ऐसे तमाम मामलों में मिसाल बनेगा जहां पर पति की आर्थिक निर्भरता पर सवाल उठते हैं। कोर्ट का यह दृष्टिकोण न्यायपूर्ण और प्रगतिशील है, जो जेंडर न्यूट्रलिटी (Gender Neutrality) की दिशा में एक सशक्त कदम माना जा रहा है।