Madrasa Teacher Salary: मदरसों में पढ़ाने वाले मौलाना कितनी सैलरी लेते हैं? सच्चाई जानकर रह जाएंगे हैरान

क्या आपको लगता है कि मौलाना बनना सिर्फ इज्ज़त की बात है? हकीकत कुछ और है! भारत के मदरसों में दिन-रात बच्चों को धार्मिक शिक्षा देने वाले मौलानाओं की आर्थिक हालत क्या वाकई उतनी ही सम्मानजनक है? जानिए उनकी सैलरी, संघर्ष और उस सिस्टम की सच्चाई, जो अब तक छिपी हुई थी

By Pankaj Singh
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Madrasa Teacher Salary: मदरसों में पढ़ाने वाले मौलाना कितनी सैलरी लेते हैं? सच्चाई जानकर रह जाएंगे हैरान
Madrasa Teacher Salary: मदरसों में पढ़ाने वाले मौलाना कितनी सैलरी लेते हैं? सच्चाई जानकर रह जाएंगे हैरान

भारत में मदरसे पारंपरिक इस्लामी शिक्षण संस्थान (Islamic Educational Institutions) के रूप में जाने जाते हैं, जहां कुरान, हदीस, अरबी भाषा और अन्य धार्मिक विषयों की शिक्षा दी जाती है। इन मदरसों में पढ़ाने वाले शिक्षकों को मौलाना कहा जाता है, जो न केवल धार्मिक ज्ञान का प्रसार करते हैं बल्कि समाज में नैतिकता और आध्यात्मिकता की भूमिका को भी मजबूत करते हैं। हालांकि, जब बात इन मौलानाओं की आर्थिक स्थिति (Financial Condition) की होती है, तो स्थिति चिंताजनक नजर आती है। आइए जानते हैं कि भारत में मौलानाओं को कितनी सैलरी मिलती है और यह किन कारकों पर निर्भर करती है।

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सरकारी मदरसों में मौलानाओं की सैलरी

भारत में कुछ राज्य सरकारें मदरसों को मान्यता देने के साथ-साथ आर्थिक सहायता भी प्रदान करती हैं। ऐसे मदरसे सरकारी सहायता प्राप्त मदरसे (Government-Aided Madrasas) कहलाते हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और असम जैसे राज्यों में मदरसा बोर्ड का गठन किया गया है, जो इन शिक्षण संस्थानों को रेगुलेट करता है।

उत्तर प्रदेश में मदरसा बोर्ड द्वारा नियोजित मौलानाओं को ₹12,000 से ₹20,000 मासिक वेतन दिया जाता है, जो उनकी योग्यता (Qualification), अनुभव (Experience) और मदरसे की श्रेणी पर आधारित होता है। वहीं पश्चिम बंगाल और बिहार जैसे राज्यों में यह वेतन ₹6,000 से ₹15,000 तक हो सकता है।

इन मदरसों में टीचर्स को ग्रेड के आधार पर वेतनमान मिलता है, जैसे अन्य शैक्षणिक संस्थानों में मिलता है। हालांकि यह वेतन अधिकांश सरकारी स्कूल शिक्षकों के मुकाबले कम ही होता है, लेकिन यह एक नियमित आय का स्रोत बनता है।

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प्राइवेट मदरसों की हकीकत

भारत में बड़ी संख्या में मदरसे निजी रूप से या मस्जिदों और स्थानीय समाज द्वारा चलाए जाते हैं। इन्हें प्राइवेट या गैर-सरकारी मदरसे (Private Madrasas) कहा जाता है। इन संस्थानों में मौलानाओं को कोई तयशुदा वेतन नहीं मिलता। उनकी आय समाज द्वारा दिए गए मासिक दान, फितरा, ज़कात या धार्मिक कार्यक्रमों से मिलने वाली रकम पर निर्भर करती है।

ऐसे मदरसों में कई बार मौलाना को ₹3,000 से ₹8,000 तक ही मासिक आय हो पाती है। यह रकम भी नियमित नहीं होती, जिससे आर्थिक अस्थिरता बनी रहती है। कई बार इन मौलानाओं को धार्मिक सेवाओं जैसे निकाह, जनाज़ा, तिलावत और दुआ के आयोजन में भाग लेने के बदले ‘नेमत’ के रूप में कुछ पैसे मिलते हैं।

मौलानाओं की आय में असमानता

भारत के विभिन्न हिस्सों में मौलानाओं की सैलरी में भारी असमानता देखने को मिलती है। यह अंतर मुख्यतः निम्न कारकों पर निर्भर करता है:

  • मदरसे की आर्थिक स्थिति
  • राज्य सरकार की सहायता
  • मौलाना की योग्यता और अनुभव
  • स्थानीय समाज का आर्थिक स्तर

जहां कुछ बड़े शहरों में स्थापित मदरसों में मौलानाओं को बेहतर वेतन और सुविधाएं मिलती हैं, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति बेहद खराब होती है।

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अतिरिक्त कमाई के स्रोत

कम वेतन की स्थिति में अधिकांश मौलाना अतिरिक्त आय के लिए अन्य उपाय अपनाते हैं। इनमें मुख्यतः शामिल हैं:

  • निजी ट्यूशन देना
  • धार्मिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेना
  • किताबें लिखना या धार्मिक व्याख्यान देना
  • अरबी या उर्दू भाषा की कोचिंग

इन माध्यमों से मौलाना अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं, लेकिन यह आय भी स्थायी नहीं होती।

मौलानाओं की सामाजिक भूमिका बनाम आर्थिक स्थिति

मौलाना बनना केवल एक पेशा नहीं बल्कि एक धार्मिक सेवा मानी जाती है। समाज में इन्हें आदर की दृष्टि से देखा जाता है। वे बच्चों को न केवल धार्मिक शिक्षा देते हैं बल्कि नैतिक मूल्यों की शिक्षा भी प्रदान करते हैं। बावजूद इसके, उनकी आर्थिक स्थिति उन्हें अक्सर एक असुरक्षित भविष्य की ओर धकेल देती है।

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वर्तमान में यह आवश्यक हो गया है कि मौलानाओं को एक सम्मानजनक और स्थिर वेतन सुनिश्चित किया जाए, ताकि वे पूरी तरह से अपने शिक्षण कार्य पर केंद्रित रह सकें और समाज को बेहतर दिशा दे सकें।

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Pankaj Singh

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