
भारतीय रिजर्व बैंक-RBI ने हाल ही में मौद्रिक नीति समिति की बैठक के बाद एक बड़ा कदम उठाया है, जिसके तहत निजी क्षेत्र के सिटीबैंक पर 30 लाख 20 हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया है। यह एक्शन फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट यानी फेमा एक्ट 1999 के नियमों के उल्लंघन को लेकर लिया गया है। आरबीआई ने बुधवार को इस जुर्माने की जानकारी एक आधिकारिक बयान के जरिए साझा की है।
फेमा नियमों का उल्लंघन बना जुर्माने की वजह
सिटीबैंक पर यह जुर्माना विदेशी मुद्रा खातों से जुड़े मामलों में लापरवाही के चलते लगाया गया है। बैंक एक घटक द्वारा खोले गए विदेशी मुद्रा खाते से प्राप्त इनवर्ड रेमिटेंस को संसाधित करने में उचित सावधानी बरतने में विफल रहा। जब नियमों के उल्लंघन की जानकारी सामने आई, तो आरबीआई ने बैंक को एक कारण बताओ नोटिस भेजा। बैंक की ओर से लिखित उत्तर और मौखिक प्रस्तुतियां दी गईं, लेकिन जांच में यह स्पष्ट हुआ कि नियमों का उल्लंघन हुआ है। इसके बाद केंद्रीय बैंक ने तय किया कि बैंक पर मौद्रिक दंड लगाया जाए। हालांकि, यह पेनल्टी बैंक और ग्राहकों के बीच मौजूदा ट्रांजैक्शन या एग्रीमेंट को प्रभावित नहीं करेगी।

6 एनबीएफसी का लाइसेंस रद्द, 11 ने खुद छोड़ा कारोबार
इसके साथ ही आरबीआई ने 6 नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों-NBFCs का सर्टिफिकेट ऑफ रजिस्ट्रेशन (CoR) रद्द कर दिया है। इसका मतलब यह है कि अब ये कंपनियां NBFC के तौर पर भारत में व्यवसाय नहीं कर पाएंगी। इनमें से पांच कंपनियों के लाइसेंस 24 मार्च को रद्द किए गए थे और एक कंपनी का लाइसेंस 26 मार्च को।
चेन्नई स्थित थमीरायपरानी इन्वेस्टमेंट प्राइवेट लिमिटेड, अरमुस्क इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट्स लिमिटेड, विश्वप्रिय गोल्ड हायर परचेज लिमिटेड और मैट्रिक्स फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड के अलावा इंदौर, मध्यप्रदेश की यूनीटारा फाइनेंस लिमिटेड और अहमदाबाद की वेलफेयर सिक्योरिटीज लिमिटेड का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया गया है। इनमें से यूनीटारा फाइनेंस को 20 फरवरी 1998 को लाइसेंस मिला था, जिसे अब खत्म कर दिया गया है।
वहीं, कुल 11 एनबीएफसी कंपनियों ने या तो व्यवसाय बंद करने के कारण या फिर विलय, समामेलन या स्वैच्छिक विघटन के चलते अपना लाइसेंस स्वेच्छा से आरबीआई को सौंप दिया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि नॉन बैंकिंग सेक्टर में भी रेग्युलेटरी टाइटनिंग हो रही है और हर कंपनी को सख्त नियमों का पालन करना आवश्यक है।