‘प्रमोशन आपका हक नहीं!’ सुप्रीम कोर्ट का चौंकाने वाला बयान, नौकरीपेशा वाले पढ़ें ये खबर

तमिलनाडु के एक कांस्टेबल को विभाग ने प्रमोशन से बाहर कर दिया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने दिया करारा झटका। कोर्ट ने कहा—हर कर्मचारी को प्रमोशन का नहीं, लेकिन 'विचार का अधिकार' जरूर है। जानिए कैसे एक पुराना मामला पलटा, और अब कांस्टेबल को मिलेंगे 2019 से सारे फायदे! पढ़ें पूरी कहानी

By Pankaj Singh
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‘प्रमोशन आपका हक नहीं!’ सुप्रीम कोर्ट का चौंकाने वाला बयान, नौकरीपेशा वाले पढ़ें ये खबर
‘प्रमोशन आपका हक नहीं!’ सुप्रीम कोर्ट का चौंकाने वाला बयान, नौकरीपेशा वाले पढ़ें ये खबर

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट-Supreme Court ने हाल ही में अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि किसी भी कर्मचारी को प्रमोशन का अधिकार (Right to Promotion) भले ही न हो, लेकिन उसे प्रमोशन के लिए विचार किए जाने का अधिकार जरूर है। कोर्ट ने यह टिप्पणी तमिलनाडु पुलिस के एक कांस्टेबल की याचिका पर सुनवाई करते हुए दी, जो 2002 में सेवा में नियुक्त हुआ था और 2019 में जब इन-सर्विस प्रमोशन प्रक्रिया चली, तो उसे योग्य नहीं माना गया।

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इस निर्णय ने भविष्य के कई ऐसे मामलों के लिए मिसाल कायम की है, जहाँ कर्मचारी पूर्व की कार्यवाहियों के बावजूद निष्पक्ष विचार की मांग करते हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से यह भी स्पष्ट होता है कि प्रशासनिक कार्यप्रणाली में पारदर्शिता और न्याय के मानक सर्वोपरि हैं।

2019 की प्रमोशन प्रक्रिया में नहीं मिला मौका

तमिलनाडु पुलिस विभाग की 2019 में सब-इंस्पेक्टर पद के लिए चली प्रमोशन प्रक्रिया में उस कांस्टेबल को शामिल नहीं किया गया। विभाग का तर्क था कि उसके खिलाफ पूर्व में एक विभागीय कार्रवाई और एक आपराधिक मामला लंबित था। हालांकि, याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि दोनों मामलों में उसे या तो बरी कर दिया गया था या सजा को समाप्त कर दिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी: नियमों के खिलाफ है यह रवैया

सुप्रीम कोर्ट-SC ने अपने फैसले में कहा कि विभाग ने कर्मचारी के प्रमोशन पर विचार न करके न केवल अन्याय किया है, बल्कि उसके ‘विचार के अधिकार’ (Right to be Considered for Promotion) का उल्लंघन भी किया है। कोर्ट ने बताया कि कांस्टेबल को 2005 में वेतन वृद्धि रोकने की एक साल की सजा दी गई थी, जो 2009 में ही समाप्त हो गई थी। इसके बावजूद 2019 में उसे अनफिट मानना पूरी तरह अनुचित है।

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विभाग को दोबारा करनी होगी योग्यता की समीक्षा

कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी निर्देश दिया कि विभाग को कांस्टेबल की योग्यता की दोबारा समीक्षा करनी होगी। यदि वह प्रमोशन के लिए योग्य पाया जाता है, तो उसे 2019 से ही सब-इंस्पेक्टर के पद पर प्रोमोट किया जाएगा। इसके साथ ही उसे उस पद से जुड़ी सभी वित्तीय और पद लाभ (Monetary and Positional Benefits) भी दिए जाएंगे।

मद्रास हाईकोर्ट का फैसला पलटा

इस मामले में पहले मद्रास हाईकोर्ट-Madras High Court ने कांस्टेबल की याचिका को खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट ने विभाग के फैसले को सही ठहराया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस निर्णय को पलटते हुए स्पष्ट किया कि विभाग की गलती की वजह से कर्मचारी को नुकसान नहीं उठाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण: निष्पक्षता और पारदर्शिता होनी चाहिए अनिवार्य

कोर्ट ने कहा कि हर सरकारी विभाग या कंपनी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रमोशन जैसी महत्वपूर्ण प्रक्रिया में पारदर्शिता (Transparency) और निष्पक्षता (Fairness) बनी रहे। सिर्फ किसी पुराने मामले को आधार बनाकर किसी कर्मचारी को प्रमोशन से वंचित करना न्यायसंगत नहीं है, खासकर जब उस मामले में अब कोई दोष नहीं रह गया हो।

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कर्मचारी का अधिकार सिर्फ पद नहीं, विचार भी है जरूरी

इस फैसले ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि सरकारी सेवा में कर्मचारी को सिर्फ पद की दौड़ में शामिल होने का नहीं, बल्कि निष्पक्ष रूप से विचार किए जाने का अधिकार भी होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इस दिशा में एक मजबूत संदेश दिया है कि विभागीय मनमानी अब न्यायालय की नजर से नहीं बचेगी।

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Pankaj Singh

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