
भारतीय कानून में संपत्ति के अधिकार को लेकर समय-समय पर महत्वपूर्ण बदलाव और न्यायिक व्याख्याएं सामने आती रही हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के एक ऐतिहासिक फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि पिता की स्व-अर्जित संपत्ति (Self-acquired Property) में बेटे का कोई जन्मसिद्ध अधिकार नहीं होता। यह फैसला इस विषय पर वर्षों से चली आ रही भ्रांतियों को दूर करने वाला है और इससे लाखों भारतीय परिवारों को संपत्ति विवादों से बचने में मदद मिलेगी।
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सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक निर्णय से यह स्पष्ट हो गया है कि पिता की स्व-अर्जित संपत्ति पर बेटों का कोई स्वचालित अधिकार नहीं होता। यह अधिकार केवल तभी मिल सकता है जब पिता स्वेच्छा से संपत्ति का बंटवारा करें या वसीयत बनाएं। दूसरी ओर, पैतृक संपत्ति में सभी उत्तराधिकारियों का समान अधिकार होता है, जिसे कानून ने जन्म से ही मान्यता दी है।
स्व-अर्जित संपत्ति और पैतृक संपत्ति में अंतर
भारतीय कानून के तहत संपत्ति को दो प्रमुख भागों में बांटा गया है — स्व-अर्जित संपत्ति (Self-acquired Property) और पैतृक संपत्ति (Ancestral Property) ।
स्व-अर्जित संपत्ति वह होती है जिसे किसी व्यक्ति ने अपनी आय, व्यवसाय या मेहनत के बल पर खुद अर्जित किया हो। इस प्रकार की संपत्ति पर केवल उस व्यक्ति का अधिकार होता है जिसने इसे कमाया है। वह चाहें तो इसे अपनी वसीयत (Will) के अनुसार किसी को भी दे सकते हैं — बेटा, बेटी या कोई अन्य व्यक्ति।
वहीं पैतृक संपत्ति वह होती है जो चार पीढ़ियों से चली आ रही हो — जैसे पिता, दादा, परदादा और उनके पूर्वजों से प्राप्त हुई हो। इसमें बेटों, बेटियों और अन्य उत्तराधिकारियों को जन्म से ही साझा अधिकार प्राप्त होता है। इस संपत्ति को बेचने या स्थानांतरित करने के लिए सभी सह-स्वामियों की सहमति आवश्यक होती है।
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सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला: स्व-अर्जित संपत्ति पर बेटों का अधिकार नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अंगदी चंद्रन्ना बनाम शंकर एवं अन्य (सिविल अपील संख्या 5401/2025) केस में स्पष्ट कर दिया कि स्व-अर्जित संपत्ति को संयुक्त परिवार की संपत्ति नहीं माना जा सकता जब तक कि संपत्ति का मालिक स्वयं ऐसा करने की सहमति न दे। यह निर्णय न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने सुनाया।
इस फैसले का सीधा मतलब यह है कि अगर कोई पिता अपनी संपत्ति किसी को नहीं देना चाहता, तो बेटे या अन्य उत्तराधिकारी उस पर जबरन दावा नहीं कर सकते, चाहे वे विवाहित हों या अविवाहित।
मिताक्षरा कानून और उसका प्रभाव
भारत में हिंदू परिवारों की संपत्ति व्यवस्था में मिताक्षरा कानून (Mitakshara Law) की अहम भूमिका है। इस प्रणाली के अनुसार, पैतृक संपत्ति में बेटे को जन्म से ही अधिकार प्राप्त होता है। लेकिन स्व-अर्जित संपत्ति के मामले में यह अधिकार लागू नहीं होता। पिता को पूरी स्वतंत्रता है कि वह अपनी अर्जित संपत्ति को अपनी इच्छा अनुसार किसी को भी दे या न दे।
मिताक्षरा प्रणाली यह भी स्पष्ट करती है कि पिता अपनी स्व-अर्जित संपत्ति का एकमात्र स्वामी होता है और उसका निर्णय अंतिम होता है।
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वसीयत की भूमिका (Property Will)
अगर कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति को लेकर वसीयत (Will) तैयार करता है, तो उसी वसीयत के अनुसार संपत्ति का वितरण किया जाता है। वसीयत न होने की स्थिति में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 लागू होता है, जिसमें संपत्ति का वितरण तय प्रक्रिया के अनुसार होता है।
स्व-अर्जित और पैतृक संपत्ति के वर्गीकरण के अनुसार ही उत्तराधिकार का निर्धारण होता है। वसीयत के माध्यम से संपत्ति को किसी भी व्यक्ति के नाम किया जा सकता है — भले वह परिवार का सदस्य हो या न हो।
विवाद से बचने के लिए क्या करें?
भारतीय परिवारों में संपत्ति को लेकर विवाद आम हैं, विशेषकर जब यह स्पष्ट न हो कि कौन-सी संपत्ति स्व-अर्जित है और कौन-सी पैतृक। इसीलिए यह आवश्यक है कि:
- संपत्ति का रिकॉर्ड सही ढंग से रखा जाए।
- समय रहते वसीयत बनाई जाए।
- सभी परिवारजनों को संपत्ति की प्रकृति और उत्तराधिकार के नियमों की जानकारी हो।
- विवाद से बचने के लिए कानूनी सलाह ली जाए।