
Solar Energy के क्षेत्र में जापान की हालिया कोशिशों ने Renewable Energy के भविष्य को एक नया मोड़ दे दिया है। अब तक सूर्य की ऊर्जा को केवल धरती पर मौजूद सौर पैनलों के माध्यम से उपयोग में लाया जाता था, लेकिन जापान ने इसे अंतरिक्ष में स्थापित करके सीधे वहां से बिजली धरती तक भेजने की अनोखी तकनीक पर काम शुरू कर दिया है। यह परियोजना दुनिया की पहली ऐसी पहल होगी, जहां वायरलेस ट्रांसमिशन के जरिए बिजली को अंतरिक्ष से धरती पर भेजा जाएगा।
इस क्रांतिकारी तकनीक को OHISAMA नाम दिया गया है, जो जापानी भाषा में “सूर्य” का प्रतीक है। इस मिशन का उद्देश्य न केवल Earth-based Solar Panels की सीमाओं को पार करना है, बल्कि Global Energy Crisis का समाधान भी खोजना है। जापान का यह कदम बताता है कि वह आने वाले समय में Green Energy Solutions के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है।
माइक्रोवेव के जरिए अंतरिक्ष से धरती पर पहुंचेगी बिजली
जापान की इस तकनीक में सैटेलाइट सूर्य की रोशनी को इकट्ठा करेगा और इसे ऑनबोर्ड बैटरी में संग्रहित करेगा। इसके बाद इस ऊर्जा को माइक्रोवेव में बदलकर पृथ्वी पर भेजा जाएगा। यह ऊर्जा धरती पर विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए एंटेना के माध्यम से प्राप्त की जाएगी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस सिस्टम से लगभग 1 किलोवाट बिजली भेजी जा सकेगी — जो कि शुरुआत के तौर पर एक डिशवॉशर चलाने के लिए काफी है।
सैटेलाइट का वजन लगभग 400 पाउंड यानी 180 किलोग्राम होगा, जो पृथ्वी से 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थापित किया जाएगा। यह उपग्रह 28,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से घूमेगा, जिसके कारण ऊर्जा रिसीविंग सिस्टम को भी उसी तेजी से काम करना होगा। इसके लिए जापान ने लगभग 600 वर्ग मीटर में फैले 13 रिसीवर तैनात किए हैं जो ऊर्जा सिग्नल को कैच करेंगे।
टेक्नोलॉजी की चुनौती और संभावनाएं
यह टेक्नोलॉजी जितनी रोमांचक है, उतनी ही जटिल भी है। अंतरिक्ष से बिजली भेजने की प्रक्रिया अब तक केवल थ्योरी तक सीमित थी, लेकिन जापान इसे व्यवहारिक रूप देने जा रहा है। हालांकि, यह प्रयास पूरी तरह सफल होगा या नहीं, यह अभी कहना जल्दबाज़ी होगी। इससे पहले अमेरिका की नेवल रिसर्च लैबोरेटरी ने भी 2020 में ऐसी ही कोशिश की थी, जहां X-37B ऑर्बिटल टेस्ट व्हीकल के जरिए सौर ऊर्जा को माइक्रोवेव में बदला गया था। लेकिन लागत और व्यावहारिकता को देखते हुए NASA ने इसे सीमित प्रभावी माना।
जापान की इस परियोजना की लागत भी एक बड़ी चुनौती है। रिपोर्ट्स के अनुसार, इस विधि से उत्पन्न बिजली की लागत लगभग 61 सेंट प्रति किलोवाट-घंटा आंकी गई है, जबकि वर्तमान में धरती पर सौर और पवन ऊर्जा की लागत मात्र 5 सेंट प्रति किलोवाट-घंटा है।